भारत जैसे आध्यात्मिक देश में “वसुधैव कुटुम्बकम्” जो सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है, इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्) की भावना से समय-समय धर्म, सँस्कृति की रक्षा के लिए व परोपकार, परमार्थ व जग कल्याण हेतु अनेकों साधु, संत-महात्माओं, ऋषि मुनियों, योगियों, तपस्वियों, महापुरुषों का इस पावन दिव्य धरती पर जन्म(अवतरण) होता आया हैं!
*सरवर तरवर संत जन, चौथा बरसे मेह!*
*परमारथ के कारने, चारों धारी देह!!*
भावार्थ: सरोवर,वृक्ष, संतजन और चौथा मेह का बरसना ये चारों परोपकार के लिए ही प्रकट है सरोवर, वृक्ष और बादल तो जड़ हैं। संतों की परोपकारिता से किसी की बराबरी नहीं हो सकती।
इसी प्रकार इस परम्परा में संत-महात्माओं व शूरवीरों की पावन पवित्र भक्तिमय धरा, मरूभूमि, मरूस्थल मारवाड़ माटी राजस्थान के (मारवाड़) क्षेत्र में परम पुज्य श्रद्धेय बाल संत श्री सत्यप्रकाशजी महाराज का जन्म (2/2/1996) सनातन पञ्चाङ्ग के अनुसार विक्रम संवत 2052,बसन्तोत्सव, चैत्र मास, कृष्ण पक्ष, दूज को ब्रह्म मुहूर्त की शुभ वेला पर किसान परिवार में आपका जन्म हुआ। बचपन से ही माता-पिता व परमात्मा से आप में अच्छे संस्कार थे, बाल्य अवस्था से ही आप, नशा, कुसंग व विकारों से दूर थे । केवल भगवान श्री कृष्ण में और उनकी चर्चा, कथा, सत्संग, भजन-कीर्तन में ही आपकी गहन रूचि थी । प्रारम्भिक शिक्षा नजदीक गाँव में ही हुई ।
धीरे-धीरे समय बीतता गया, भक्ति का बीज ह्रदय में अंकुरित होता गया….ठीक इसी प्रकार एक तरह परमात्मा की कृपा से संयोग था कि मारवाड़ माटी के सुप्रसिद्ध गुरूवर संत श्री राजारामजी महाराज व बाल संत श्री कृपारामजी महाराज जगह-जगह कथा, सत्संग, प्रवचन करते हुवे आपकी जन्मभूमि के नजदीक श्रीमद भागवत कथा करने पधारे, आपकी रूचि के अनुसार आप भी कथा, सत्संग सुनने पधारे और आप उनकी ओजस्वी, अमृतमयी वाणी सुनकर अतिप्रभावित हुए और अमृत वचन सुनकर आपने अपने जीवन का सत्य समझ लिया…और गुरूजी के शिष्य बनने व उनके साथ रहने की ठान ली । इस बात से जब आपने माता-पिता से अवगत कराया तो आपकी छोटी उम्र को देखते हुवे माता-पिता ने गुरूजी के साथ जाने से मना कर दिया, फिर आपश्री अधिक सत्संगी व वैरागी होने के कारण और आपकी कल्याणकारी भावना को देखते हुवे माता-पिता ने हाँ भर ली और एक साल बाद गुरूजी के साथ रहने की आज्ञा दे दी, फिर आपने जब सांसारिक माता-पिता के पैर छुए तो माता-पिता का वात्सल्य फूट पड़ा और आँखों से अश्रुधारा बह निकली, लेकिन चहरे पर उत्साह का भाव था कि मेरा बेटा संत बनेगा…धन्य हो ऐसे माता-पिता जिन्होंने अपने कलेजे के टुकड़े अपने पुत्र को सनातन धर्म के लिए समर्पित कर दिया और आपने मात्र 7 साल की अल्पायु में घर-परिवार का त्याग कर संत(संन्यास) जीवन अपना लिया, गुरूजी की शरण में (जोधपुर) आ गए ।
बाद में आपने गुरूवर संत श्री राजारामजी महाराज व श्रद्धेय संत श्री कृपारामजी महाराज से संन्यास दीक्षा ली, और गुरूदेव ने आपश्री को 6 वर्ष बाद भेख़(भगवा) दिया । आज आप ईश्वर की अनुकम्पा व गुरू कृपा से आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ रहे हैं । आपश्री निश्वार्थ व जनकल्याण की भावना से श्रीमद भागवत कथा, शिव महापुराण, श्री रामकथा, नैनी बाई रो मायरो, सत्संग-प्रवचन, भजन-संध्या, ध्यान योग शिविर आदि पुनीत कार्य करके जन-जन को लाभान्वित कर रहे हैं । आध्यात्मिक के साथ-साथ आपश्री शिक्षा को भी जारी रखा अभी आपश्री संस्कृत साहित्य व हिंदी साहित्य में शास्त्री की योग्यता हासिल कर रहे हैं, उसके बाद आचार्य की डिग्री प्राप्त करेंगे ।
आपश्री को सन्तों की अनुभव वाणी, संस्कृत, हिंदी व मारवाड़ी भाषा अति प्रिय हैं ।
महाराज श्री का उद्देश्य
◆ सनातन(हिन्दू) धर्म संस्कृति, संस्कारों, सभ्यता व परम्पराओं की रक्षा करना व प्रचार प्रसार करना ।
◆ कलियुग में अशांति से जूझ रहे लोगों को प्रेम व भक्ति से जोड़ना ।
◆ युवा पीढ़ी व में शिक्षा व संस्कारों की नई जाग्रति व नारी सशक्तिकरण।
◆ शाकाहार का प्रचार- प्रसार करना और मांसाहार, नशे जैसी कुरूतियों को मिटाना, जागरूकता लाना ।
◆ गौरक्षा व पर्यावरण को बचाना ।
◆ जात-पांत, ऊँच नीच भेदभाव की भावना से ऊपर उठकर दीनदुखियों, गरीबों की सेवा और सभी को आपस में जोड़कर धर्म, राष्ट्र हित व मानवता के प्रति मानव समाज को जाग्रत करना ।
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2 Comments
अद्भुत
ReplyDeleteThank u
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