हरे घास री रोटी- Song Lyrics ,Prakash Mali ( Hare Ghas Ri Roti By Prakash Mali ) Maharana Pratap Song

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हरे घास री रोटी- Song Lyrics ,Prakash Mali ( Hare Ghas Ri Roti By Prakash Mali ) Maharana Pratap Song

🍀🍀हरे घास री रोटी🍀🍀

हरे घास री रोटी- Song Lyrics ,Prakash Mali ( Hare Ghas Ri Roti By Prakash Mali ) Maharana Pratap Song


अरे घास री रोटी ही‚ जद बन–बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हों सो अमर्यो चीख पड़्यो‚ राणा रो सोयो दुःख जाग्यो।

हूँ लड़्यो घणो‚ हूँ सह्यो घणो‚ मेवाड़ी मान बचावण नै।
मैं पाछ नहीं राखी रण में‚ बैर्यां रो खून बहावण नै।

जब याद करूँ हल्दीघाटी‚ नैणां में रगत उतर आवै।
सुख–दुख रो साथी चेतकड़ो‚ सूती सी हूक जगा जावै।

पण आज बिलखतो देखूँ हूँ‚ जद राजकंवर नै‚ रोटी नै।
तो क्षात्र धर्म नै भूलूँ हूँ‚ भूलूँ हिंदवाणी चोटी नै।

आ सोच हुई दो टूक तड़क‚ राणा री भीम बजर छाती।
आँख्यां मैं आँसू भर बोल्यो‚ हूँ लिखस्यूँ अकबर नै पाती।

राणा रो कागद बाँच हुयो‚ अकबर रो सपनो–सो सांचो।
पण नैण कर्या बिसवास नहीं‚ जद् बाँच बाँच नै फिर बाँच्यो।

बस दूत इसारो पा भाज्यो‚ पीथल नै तुरत बुलावण नै।
किरणां रो पीथल आ पुग्यो‚ अकबर रो भरम मिटावण नै।

“म्हें बांध लियो है पीथल! सुण‚ पिंजरा में जंगली सेर पकड़।
यो देख हाथ रो कागद है‚ तू देखां फिरसी कियां अकड़।
मर डूब चलू भर पाणी में,झूठा ही गाल बजावे हो ।
पण टूप गियो बी राणे रो,तू भाट बण्यां पिड़तावे हो ।
हूं आज पातस्या धरटी रो‚ मेवाड़ी पाग पगां में है।
अब बता मनै किण रजवट नै‚ रजपूती खून रगां में है”।

जद पीथल कागद ले देखी‚ राणा री सागी सैनांणी।
नीचै सूं धरती खिसक गयी‚ आख्यों मैं भर आयो पाणी।

पण फेर कही तत्काल संभल “आ बात सफा ही झूठी है।
राणा री पाग सदा ऊंची‚ राणा राी आन अटूटी है।

“ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूँ, राणा नै कागद रै खातर।”
“लै पूछ भला ही पीथल! तू‚ आ बात सही” बोल्यो अकबर।

“म्हें आज सुणी है‚ नाहरियो, स्याला रै सागै सोवैलो।
म्हें आज सुणी है‚ सूरजड़ो‚ बादल री आंटा खोवैलो”
हूं आज सुणी है चातकड़ो धरती रो पाणी पीवेलो ।
हूं आज सुणी है हाथीड़ो रो कूकर री जूण्यां जीवेलो ।
हूं आज सुणी है थारे थकां अब रांड हुवेला रजपूती ।
हूं आज सुणी है म्यानां में तलवार रेवेला अब सूती ।
ओ म्हारो हिवड़ो कांपे है,मूंछ्याँ री मोड़-मरोड़ गई ।
पीथल राणा नें लिख भेज्यो,आ बात गिणां में किंया सही ।
पीथल रा आखर पढ़ता ही‚ राणा राी आँख्यां लाल हुई।
“धिक्कार मनै‚ हूँ कायर हूँ” नाहर री एक दकाल हुई।

“हूँ भूख मरूं‚ हूँ प्यास मरूं‚ मेवाड़ धरा आजाद रहै।
हूँ घोर उजाड़ां मैं भटकूँ‚ पण मन में माँ री याद रह्वै”

पीथल के खिमता बादल री‚ जो रोकै सूर्य उगाली नै।
सिंहा री हाथल सह लेवे बा कूख मिली कद स्याली नें ।
धरती रो पाणी पीवे इसी चातक री चूंच बणी कोनी ।
कूकर री जूण्यां जीवे इसी हाथी री बात सुणी कोनी ।
आं हाथां में तलवार थकां ,कुण रांड केवेला रजपूती ।
म्यानां रे बदले बैरयां री छाती में रेवेला सूती ।
मैवाड़ धधकतो अंगारो,आंध्यां में चमचम चमकेलो ।
कड़ भीरी उठती तानां पर,पग पग पर खांडो खड़केलो ।
राखो थे मूंछ्यां ऐंठोड़ी,लोयां री नदी बहा दूं ला ।
मैं अथक लड़ूला अकबर सूं,उजड्यो मैवाड़ बसा दूं ला।
जद राणा रो संदेश गयो‚ पीथल री छाती दूणी ही।
हिंदवाणों सूरज चमके
 हो‚ अकबर री दुनियां सूनी ही।

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