क्यों लता मंगेशकर और राजसिंह डूंगरपुर की प्रेमकथा अधूरी रही ? Lata Mangeshkar Love Story 🙂

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क्यों लता मंगेशकर और राजसिंह डूंगरपुर की प्रेमकथा अधूरी रही ? Lata Mangeshkar Love Story 🙂

सारी दुनिया लता मंगेशकर को याद कर रही है लेकिन लता मंगेशकर जिस शख़्स को याद करती रहती थीं, उस राजसिंह डूंगरपुर को कोई याद नहीं कर रहा !

आज भारत सरकार ने लता मंगेशकर के निधन पर राष्ट्रीय शोक का जो आदेश निकाला है उसमें उन्हें कुमारी लता मंगेशकर लिखा गया है । अगर लता मंगेशकर का प्यार परवान चढ़ता तो वे कुमारी नहीं होती, अकेली नहीं रहती । क्या लता मंगेशकर और राजसिंह डूंगरपुर की प्रेमकथा अधूरी रही ?

क्या सच्चे प्रेम की कथाएँ (शायद) अधूरी रहने को अभिशप्त होती हैं ? लता और राजसिंह की प्रेमकहानी भी इसी तरह की रही । लैला मजनूँ जैसी । ढोला मारू जैसी । रामू चनणा जैसी ।

जयपुर में 87 के आसपास राजसिंह डूंगरपुर लता मंगेशकर को जयपुर लाये थे । तब अकाल पीड़ितों के लिए एसएमएस क्रिकेट स्टेडियम में लताजी का यादगार कार्यक्रम हुआ था, जिसकी मुझे याद है । इस कार्यक्रम में एक करोड़ से अधिक की धनराशि लताजी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को भेंट की थी । इस कार्यकम में संयोग से मैं मौज़ूद था ।

इससे पूर्व लताजी राजसिंह डूंगरपुर की प्रेरणा से 1983 की क्रिकेट विजय के सम्मान में दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में एक कार्यक्रम कर चुकी थी जिसकी कमाई से सभी विजेता क्रिकेटरों को एक एक लाख रुपये दिए गए थे । तब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आज की तरह मालामाल नहीं था ।

राजसिंह डूंगरपुर राजा थे, क्रिकेटर थे, क्रिकेट के आदमी थे, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष रहे । उन्होंने ही क्रिकेट चयन समिति का अध्यक्ष रहते अज़हरुद्दीन से कहा था - मियाँ कप्तान बनोगे ? और अज़हर को कप्तान बनाया ।

यह एक अद्भुत प्रेम कथा है जिसे किसी को लिखना चाहिए । वाणी प्रकाशन से प्रकाशित यतीन्द्र मिश्र की झूठी और पुरस्कृत किताब 'लता : एक सुरगाथा' को इसलिए मैंने खिड़की के बाहर फेंक दिया था कि उसमें राजसिंह डूंगरपुर का नाम तक नहीं है । और आश्चर्य यह कि इस किताब में खेमचंद प्रकाश का भी उस तरह क़ाबिले-तौर ज़िक़्र नहीं है, जैसा होना चाहिए था, जिसने लता बाई को लता मंगेशकर बनाया । आएगा आने वाला आएगा, आएगा, आएगा !

कब तक छिपाया जाएगा, किसी को तो लिखनी पड़ेगी यह अद्भुत प्रेम कहानी, जिसमें दोनों प्रेमियों को अकेले जीवन बसर करना पड़ा । लता मंगेशकर भी आजीवन कुमारी रही और हमारे राजस्थान के राजसिंह डूंगरपुर कुमार । उन्होंने भी शादी नहीं की । लता मंगेशकर क्रिकेट की दीवानी ऐसे ही नहीं थी ।

मुझे लगता है राजसिंह डूंगरपुर ज़रूर स्वर्ग या जन्नत या सात आसमानों के पार जहाँ भी होंगे अपनी प्रिया लता मंगेशकर का इन्तिज़ार करते हुए मिलेंगे ।

मृत्यु भी अपने उदात्त, दुर्लभ और पुण्य क्षणों में महामिलन में बदल जाती है ।

दोनों प्रेमियों को स्मृति-नमन !

Source- Social media.

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