समाज में बढ़ रहे बॉलीवुड पहनावे चिंता का विषय - संध्या राजपुरोहित ( विचााभिव्यक्ति)

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समाज में बढ़ रहे बॉलीवुड पहनावे चिंता का विषय - संध्या राजपुरोहित ( विचााभिव्यक्ति)

मैं सँदिया जयपुर से सभी बन्ना ओर बाईसा को जय खेतेश्वर दाता  की अर्ज करती हूं सा।

आज मैं सिर्फ राजपुरोहित पहनावे के बारे में बात करूंगी ।आज के मॉर्डन युग मे अपनी बहने ओर बाईसा छोटे छोटे कपड़ो को पहनकर बॉलिवुड लाइन पर चलने की कोसिस कर रही है।इस
लिए उन सभी को मैं एक कहानी के माध्यम से बताना चाहती हु।

एक बाईसा ने अपने पापा से एक दिन सवाल किया कि पापा जी आप भाई को तो कभी नही बोलते की कहा जा रहा है
क्या पहन रहा है क्या खा रहा। और आप हमें छोटी छोटी बातों पर डांट देते हो।ऐसा क्यो ? अब उसके पापा को लगा कि अपनी बेटी समझदार हो गई है ।अब इस सवाल का जबाब
उसके पापा ने दिया वो सुनने लायक था कि बेटी तुम ये गलत सोचती हो कि हम तुम्हे मना करते है उसका एक रीजन है।
बेटियां सोना होती है जैसे एक सुनार सोने को किस तरह सम्भाल कर रखता पहले उसको डब्बी में रखेगा फिर उसको थैले में फिर उसको तिजोरी में इस लिए तुम सोना हो हमारा
आपको कोई गलत नजर से ना देखे इसलिए हम आपको बोलते है। दूसरी ओर बेटा को इस लिए नही बोलता की वो लोहा है। दुकान ले बाहर भी पडा रहेगा तो उसकी ओर नजर नही
करेगा कोई अब बताओ बेटी दुकान के बाहर सोना और लोहा पड़ा होगा तो नियत सोने पर खराब होगी या लोहे
पर अब वो बेटी समझ चुकी थी कि पापा क्या कहना चाहते है। और पापा से लिपट गई ।
 इस कहानी का कहने का मतलब
साफ है कि बाईसा का परिधान कैसा होना चाहिए।

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#जय_खेतेश्वर दाता री —

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© sandhya raj


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