सेवाभावी कर्मयोगी को शत शत नमन

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सेवाभावी कर्मयोगी को शत शत नमन

सेवाभावी कर्मयोगी को शत शत नमन। 

MDH वाले #महाशय_धर्मपाल_गुलाटी  का आज निधन हो गया है वे 98 बर्ष के थे.  वे 2 हजार करोड़ रुपये बाजार मूल्य के महाशियन दि हट्टी (MDH) ग्रुप के सीईओ गुलाटी पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित थे. उनका जीवन आज की उस पीढ़ी के लोए अत्यंत प्रेरणा दायक है जो संशाधनो की कमी को रोना रोती रहती है.

अपने आपको बुद्धिमान समझने वाले मूर्खों के लिए  "महाशय धर्मपाल गुलाटी" जी की बुढ़ापे में भी सक्रियता और जीवटता मजाक का बिषय लगती थी. उनकी आयु को लेकर भद्दे मजाक आपने फेसबुक पर भी खूब पढ़े होंगे जिनमे लिखा होता था कि - "बुढ़ऊ मरता नहीं, क्या इच्छा मृत्यु लेकर आया है ?

परंतु जब इस महापुरुष का जीवन पढ़ेंगे तो इनके समक्ष नतमस्तक हो जाएंगे. बिना स्कूली शिक्षा पाए इस सच्चे वैदिक विद्वान कारोबारी और पद्म भूषण से  सम्मानित इस महापुरुष की जीवन गाथा उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकती है, जो निठल्ले बैठे रहकर केवल सरकार और अमीरो को कोसते रहते है.

धरमपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च, 1923 को अखंड भारत के स्यालकोट में हुआ था. स्यालकोट में हुए मुस्लिम आवादी केवल 20  प्रतिशत थी और शेष आवादी हिन्दुओं और सिक्खो की थी. सारा कारोबार भी हिन्दुओं और सिक्खों के हाथ में था. उसके बाबजूद यह क्षेत्र पापिस्तान को दे दिया गया था 

बंटबारे के समय स्यालकोट में हुए हिन्दुओ / सिक्खों के कत्लेआम के बारे में आप मेरी पुरानी पोस्ट्स में पढ़ चुके हैं. 1947 में हुए देश के विभाजन के समय धरमपाल गुलाटी किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने में कामयाब रहे थे. जब वे भारत आए तब उनके पास केवल  1,500 रुपये ही थे. 

भारत आकर वे रेफ्यूजी कैंम्प में रहे. वे रिफ्यूजी कैम्प में रहते हुए पापिस्तान से अन्य रिफ्यूजी हिन्दुओं / सिक्खो की हर संभव मदद करते थे. उन्होंने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए तांगा चलाना शुरू किया. कुछ पैसे इकट्ठे हो जाने के बाद उन्होंने करोल बाग में किराये पर लेकर, मसाले की दूकान खोल ली.  

उनकी स्कूली शिक्षा केवल 5 वीं कक्षा तक ही थी मगर वे उन्हें व्यावहारिक ज्ञान की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने दूकान पर मसालों को बेचने के साथ साथ, अलग अलग व्यंजन में पड़ने वालों विभिन्न मसालों का मिश्रण बनाकर तैयार करके बेंचना शुरू कर दिया, उनका यह प्रयोग बहुत सफल रहा.

अलग अलग व्यंजन के लिए तैयार किये गए मसालों के मिश्रण की मांग बढ़ती चली गई और धीरे धीरे दिल्ली से निकल कर सारे उत्तर भारत में लोग MDH का मसाला मांगने लगे. आज उनकी भारत और दुबई में मसाले की 18 फैक्ट्रियां हैं. इन फैक्ट्रियों में तैयार एमडीएच मसाले दुनियाभर में पहुंचते हैं.

केवल 5 वीं कक्षा तक पढ़े होने के बाबजूद उन्हें मार्केटिग का बहुत ही व्यवहारिक ज्ञान था. जिस इलाके में वे अपना माल बेचना शुरू करना चाहते थे, पहले वे उस इलाके में दीवारों पर MDH मसालों के इश्तेहार लगवाते थे और खुद अपने ही लोगों को दुकानों पर भेजते थे जो दुकानदार से MDH मसाले की मांग करते थे.

उसके बाद उनके सेल्स रिप्रेजेंटेटिव दुकानों पर जाकर अपने प्रोडक्ट्स के बारे में बताते थे. दुकानदार बिना ज्यादा सवाल जबाब किये उनका माल दूकान में रख लेता था. जब दूकान में माल आ जाता है, तो दुकानदार उसे बेच ही लेता है. आज एमडीएच के 62 प्रॉडक्ट्स हैं और देश की सबसे बड़े मसाला कम्पनी है. 

इतना बड़ा कारोबार हो जाने के बाद भी उन्होंने अपनी दिनचर्या को बहुत संतुलित रखा. वे रात को जल्दी सो जाते थे और सुबह 4 बजे विस्तर छोड़ देते थे. थोड़ी देर व्यायाम करने और हल्का नाश्ता लेने के बाद टहलने नेहरू पार्क चले जाते थे. वह शाम में और फिर रात में खाना खाने के बाद भी टहलते थे. 

गुलाटी जी का कहना था  कि- उनकी लंबी आयु का राज कम खाने और नियमित व्यायाम में छिपा है. वे अपने सफेद दांत दिखाते कहते हैं- 'मैं बुड्ढा नहीं, जवान हूं. वे अपने मसालों का खुद विज्ञापन करते थे और कहते थे मैं क्या किसी हीरो से कम स्मार्ट हूँ  
   
महाशय पूरी दुनिया में 'किंग ऑफ़ स्पाइस' माने जाते थे. वे  एक सच्चे आर्य समाजी, सफल व्यवसायी हुए महादानी थे. उनके द्वारा 1 हॉस्पिटल, 15 स्कूल एवं कई अन्य चेरीटेकवल संस्थाए चलाई गई हैं. वे हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार में तन मन धन से सहयोग देते थे. 

वे युवाओ के लिए आदर्श उदाहरण और नमन के योग्य थे मज़ाक के नहीं.


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