क्या ये जानते है आप Scam 1992 के बारे में ..

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क्या ये जानते है आप Scam 1992 के बारे में ..

नमस्कार दोस्तों, आज के आर्टिकल में कुछ समय पहले आयी वेब सीरीज Scam 1992 के बारे में :-

स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी" वेब सीरीज आधारित है टाइम्स ऑफ इंडिया की पूर्व जर्नलिस्ट सुचेता दलाल और उनके पति द्वारा लिखित किताब "द स्कैम: हु वन, हु लॉस्ट, हु गॉट अवे पर

तो आइए मेरी नज़र से नज़र डालिये इस सीरीज पर।

सीरीज़ की शुरुआत में सबसे पहले जो चीज़ आकर्षित करती है वो है इसका टाइटल म्यूजिक

जब नाम आ रहे होते हैं तो एक एनीमेशन जैसा दिखाया गया है जिसमें एक ऊंची बिल्डिंग की छत पर एक व्यक्ति अपनी लक्ज़री कार के साथ शान से खड़ा है और उसका डाउन फॉल होता है।

शायद ये वेबसेरीज़ लोगों को इसीलिए ज़्यादा पसन्द आयी होगी क्योंकि इसमें भी हर सफल कहानी की तरह फिर से एक अंडरडॉग की जीत होती है।

हालांकि गलत तरीकों से की गई तरक्की बाद में कष्टदायी होती है।

एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार का लड़का जो पैसा कमाने के लिए बहुत पैशनेट है। एक तेज़ दिमाग का मालिक, जो हर हाल में सफल होना चाहता है।

हर्षद मेहता जिसके सपने इतने बड़े थे कि वो उसके एक रूम किचन के घर मे नहीं समाते। तो वो निकल पड़ता है मुम्बई शेयर मार्केट में अपने सपने साकार करने।

कहानी बहुत ही डिटेल्ड और अच्छे तरीके से बताई गई है। चूंकि इसमें फाइनेंसियल टर्म्स का काफी इस्तेमाल हुआ है, लेकिन निर्देशक और कहानीकार ने ये सुनिश्चित किया कि कहानी आगे बढ़ाने के पहले दर्शक उन टर्म्स से परिचित हो जाएं।

हमेशा की तरह मैं कहानी में क्या होता है, कहानी की डिटेल आदि यहाँ बताकर उनका मज़ा खराब नहीं करना चाहूंगा जिन्होंने अभी यह सीरीज़ नहीं देखी है।

ये सीरीज जिस कहानी पर बनी है वो भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण चैप्टर है।

कल्पना कीजिये 90 का दशक…जब भारत की इकॉनमी ओपन हो रही थी। एक आदमी आता है और शेयर मार्केट की दशा और दिशा बदल देता है (हालांकि गलत तरीकों से…)

डिजिटलीकरण और कंप्यूटरीकरण के समय से पहले, जब बैंकिंग और फाइनेंसियल सिस्टम में ढेरों लूप होल थे, उनका फायदा उठाकर वो कांड करता है, छोटा-मोटा नहीं पूरे ₹5000 करोड़ का।

कल्पना कीजिये उस आदमी की मनोदशा जिस पर 70 क्रिमिनल केसेस और 600 सिविल केसेस दर्ज किए गए हों।

वो आदमी जो छोटे से घर से निकलकर हज़ारों करोड़ रुपयों में खेला वो भी 90 के दशक में और उसका अंत होता है एक जेल में।


सभी कलाकारों का अभिनय बहुत ही अच्छा है। सीरीज में 80–90 का दशक बहुत ही अच्छे से चित्रित किया गया है।

हिंदी और गुजराती डायलॉग्स रोचकता प्रदान करते हैं।



एक दमदार कास्ट जिसमे शामिल है : सतीश कौशिक, रजत कपूर, के के रैना, अंनत महादेवन, ललित परिमू, शादाब खान, निखिल द्विवेदी, विवेक वासवानी, परेश गणात्रा, श्रेया धन्वन्तरि, हेमंत खेर, अंजली बारोट और अंत मे हर्षद मेहता का किरदार निभाने वाले गुजराती अभिनेता प्रतीक गांधी अपने बेहतरीन अभिनय के साथ।

हालांकि बीच-बीच मे ऐसा लगेगा कि पेस थोड़ा कम हो गया और हर्षद मेहता सेम समस्याओं में फंसा नज़र आता है, लेकिन शायद यही रियल लाइफ में भी हुआ होगा।

ये 90 के दशक की एक महत्वपूर्ण घटना है जिसे हमने हमेशा समाचार पत्रों, न्यूज़ आदि के माध्यम से देखा और समझा है।

इस सिरीज़ के माध्यम से उसी सच्ची घटना को रोचक और सरल तरीके से पेश किया गया है जिसे देखना बनता है।

अभिनय, निर्देशन, सिनेमेटोग्राफी, रोचकता, कहानी, डायलॉग्स, पर्सपेक्टिव सभी क्षेत्रों में ये सीरीज अच्छा स्कोर करती है।

पिछले वीकेंड में पूरे 10 एपीसोड्स एक साथ देख डाले।

रिव्यू में यही कहूंगा "मज़ो आवी गयो"

कैसी लगी आपको वेब सीरिज और मेरे विचार जरूर बताएं कॉमेंट बॉक्स में।
धन्यवाद😊
आपका अपना - विक्रमसिंह वालेरा

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