"सूरज को न्योता" -डॉ रेवंतदान

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"सूरज को न्योता" -डॉ रेवंतदान

"सूरज को न्योता" -डॉ रेवंतदान

हिंदी कविता के उदीयमान हस्ताक्षर डॉ रेवंतदान जी की कृति "सूरज को न्योता" राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से हिन्द युग्म प्रकाशन ने प्रकाशित की है।

रेगिस्तान की तपतिश में सूरज को न्योता देना किसी चुनौती से कम नही है और साथ ही यहाँ की माटी का लाल ही गर उसे न्योता दे तो शब्द अपने अर्थ से ज्यादा बोल लिया करते है और भाव प्राणों से भी प्यार लग जाने लगते है।

उनकी कविता जीवन के संघर्ष और जीवन के मूल्य को लेकर सपष्ट है,उनकी कविताओं में जितनी बौद्धिकता है उतनी हक़ीक़त भी। समस्याओं से सरोबार कवि अपने दर्द को बयां करते हुए उसे सुलझाने की भरसक कोशिश भी करते है।

कवि के जग में अंधियारा ही अंधियारा है बरसों से इस दर्द को वो सूरज के न्योते से इस जहाँ में उजाले की आशा करता है और उजाले की अनिवार्यता को स्पष्ठ करता है। वक्त के साथ बदलने की चेष्ठा भी रखता है। कविवर कहते है कि-

"ओ सूरज ! तुमको इस वक्त का न्योता है
अब आना पड़ेगा यहाँ 
ताकि इस दुनिया के वाशिंदे जान सकें
की उजालों का सच कितना असीम होता है।"

ज्यों-ज्यों न्योता सूरज स्वीकार करता है त्यों-त्यों कवि के भावों का दायरा बढ़ता जाता है। जीवन समर व युद्ध की रणभेरी के मध्य कायरों को नकारती हुई बहादुरों को जगाती है और जीवन मे जुझने को स्वीकार करते है । कविवर कहते भी हैं कि -

 "तेरी मोहब्बत के सदके 
   कि मुझे हंसकर विदा कर 
   मैं जा रहा हूं जीवन समर के लिए ।"

कवि ने अपनी कविताओं में विविधता का ध्यान रखा है। जिस तरह व्यक्ति के व्यक्तित्व के भिन्न भिन्न पहलू व्यक्ति के गुणों का पता लगाते है , उसी तरह कविताओं में  विविधता भी कवि की जीवटता और सटिकता को दर्शाते हैं और कवि के अंतर्मन को समझने में सहायता प्रदान करते हैं । भाषायी सौंदर्य और साहित्यिक क्लिष्टता से परे जाकर कवि स्थानीय शब्दों के माध्यम से आंचलिक जीवन की कोमलता और सजीवता को भरपूर दर्शाता है जिससे कवि के असाधारण होने का सुबूत है।

कवि के बौद्धिक मूल्य बड़े सशक्त नजर आते है। लिखते है कि 
'' सांच को कोई आँच नहीं
आकाश, अग्नि, जल, पृथ्वी और हवा के दरम्यान
सच था, सच है, और सच रहेगा. ''

कवि ने सियासत की प्रशस्ति की बजाय उनके शब्दों में कौम के दर्द व राह को प्रधानता दी है। वास्तव में सच्चा लेखक वही है जो जुल्म के खिलाफ लिखता हो और इसी कड़ी में डॉ. साहब लिखते है कि

'' कौम के हर कवि की कलम
अमन के गीत लिखने से पहले
जुल्म के खिलाफ़ इक़बाल लिखती हैं "

जिस किसी भी लेखक ने अपनी सभ्यता और संस्कृति तथा अस्तित्व को अपनी कृतियों का अभिन्न हिस्सा रखा है वे सभी समकालीन लेखक खूब पढ़े गए है और पढ़े भी जा रहे है। कवि मरुधर के लाल है। अपनी माटी को उन्होंने असल रूप में जीया है और उसी तरह लिखा भी है । खैर : मरुस्थल की तपतिश अधिक है लेकिन उसका फुटरापा,कोमलता और सुकून यहां की विरासत भी है। अपने देह को सान्त्वना देने वाले आज के लेखक सिर्फ स्वयं एंव मनोरंजन के लिए लिखते है न कि अपनी परम्परा और वर्तमान के हालातों पे, ना ही बुझी हुई विरासत पे और ना ही खोई हुई तहजीब /संस्कृति पे। इसी श्रेणी से इतर डॉ. रेवंतदान जी विरले कवि है। वे रेगिस्तान पे लिखते है कि-

"मैं जानता हूँ तेरी उस कोमलता को
जिसे तूने छिपा रखा है अपनी कठोरता के पीछे।"

भारतीय समाज में फैलती अमानवीय गन्ध को मानवीय रूप देने का शाब्दिक बेड़ा भी लेखक ने उठाया है। मजहबी द्वंद्व पर गहरा कटाक्ष किया है और लिखते है कि -

"वो पहला गुनहगार था
जिसने मजहब बनाया
मजहबों ने मुल्क बनाए
और मुल्कों ने सरहदें बनाई"

संघर्षधर्मी कवि रेवंतदान जी की यह कृति एक मायने में बौद्धिक और मोहक ग्रन्थ है जिसके भीतर अनेकानेक साहित्यिक परिदृश्य समाए हुए है। मुझे उनकी कृति का आंचलिक सौंदर्य और शब्द चयन प्रभावित करता है। 

अंत में कवि 'अरदास' नामक कविता में अपनी माँ से कहते है कि

"धूप ही धूप माँगना मेरे लिए
साहस ही साहस माँगना मेरे लिए
धैर्य ही धैर्य माँगना मेरे लिए
अकूत आत्मविश्वास तो तुमने
मेरे भाते में बांधा है माँ "

कविता संग्रह के शुरुआत में आदरणीय DrAidansingh Bhati जी की बेहतरीन समीक्षा लिखी है उन्ही के शब्दों में कहा जाए तो यह कविता संग्रह "जीवन-संग्रह,नेह राग और लोक मूल्यों की त्रिवेणी है"

ऐसे कवियों के पीछे अनेक दुआए होती है। इस जहां में भी और उस अनन्तकाल में भी। प्रिय कवियों की श्रेणी में डॉ.साहब का नाम लिखते हुए हर्ष हो रहा है..

भाई Ganga Singh Rajpurohit जी आपका शुक्रिया ! 
आपने इस कविता संग्रह को पढ़ने के मुझे भी आग्रह किया।

पुनश्च !डॉ. रेवंतदान जी को बहुत बधाइयाँ और अग्रिम कृतियों की अकूत शुभकामनाएं ..!!

जिंदाबाद!!

- शौक़त

#सूरज_को_न्योता #डॉ_रेवंतदान

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